Wednesday 2 November 2016

बीता हुआ कल

बीता हुआ कल है एक ख्वाब सा,
क्यों है दिल मेरा कुछ बेताब सा

कल तक जो ख्वाबों के बाग थे ,
सुलझे हुये सारे हर जवाब थे ॥
यादों के रंगों में कहीं खो गए ,
जागी हूँ मैं पर क्यों ये सो गए ॥

क्या कहूँ क्यों ये दिल उदास है,
ना कोई दूर है न कोई पास है ॥
धुंधले से सारे सपने मेरे ,
लहरों में कहीं खो गए ......


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